जाती है धूप उजले परों को समेट के,
ज़ख्मों को अब गिनूंगा
मैं बिस्तर पे लेट के…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जाती है धूप उजले परों को समेट के,
ज़ख्मों को अब गिनूंगा
मैं बिस्तर पे लेट के…..
जिसके लिए लिखता हूँ
आज कलवो कहती हैं
अच्छा लिखते हो उनको सुनाऊँगी|
इक रात चाँदनी मेंरे बिस्तर पे आई थी….
मैं ने तराश कर तेरा चेहरा बना दिया ….
प्यार अपनों का मिटा देता है ,
इंसान का वजूद ,
जिंदा रहना है तो गैरों की नज़र में रहिये…….
किताब-ए-इश्क से
इस मसले का हल पुछो…….!!
जब कोई अपना रूठ
जाये तो क्या करें…….??
गम बिछड़ने का नहीं करते खानाबदोश ,
वो तो वीराने बसाने का हुनर जानते हैं…….
खामोशी के दौर से गुजर रही है जिंदगी..
और कोई ये भी नही
पूछ रहा कि कारण क्या है..
सुनता हूं बड़े ग़ौर से अफ़सान-ए-हस्ती
कुछ ख़्वाब हैं,
कुछ अस्ल है,
कुछ तर्ज-ए-अदा है
ज़िन्दगी के मायने तो याद तुमको रह जायेंगे ,
अपनी कामयाबी में कुछ कमी भी रहने दो….
जो चीज़ उन्होंने ख़त में लिखी थी,
नहीं मिली.
ख़त हमको मिल गया है,
तस्सली नहीं मिली…..