कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन….
के सिर्फ दो उंगलिया जुडने से दोस्ती फिर शुरू हो
जाती थी….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन….
के सिर्फ दो उंगलिया जुडने से दोस्ती फिर शुरू हो
जाती थी….
ये मशवरा है की पत्थर बना के रख दिल को।
ये आइना ही रहा तो जरूर टूटेगा।।
अब किसी और के वास्ते ही सही,
तेरे मुस्कुराने के अंदाज़ वैसे ही हैं…
ना रास्ता हैं ना मंजिल है बस चला जा रहा हूँ !!
हिम्मतें तो बहुत हैं बस हाथ की लकीरों से मात खा रहा हूँ !!
उसकी गली का सफर आज भी याद है मुझे…
मैं कोई वैज्ञानिक नहीं था पर मेरी खोज लाजवाब थी…
तेरे चले जाने से, मुझे ग़ज़लो का हुनर आया,
लिखा पहले भी बहुत,पर असर अब आया..!!
एक था राजा, एक थी रानी,
दोनों मर गए, खत्म कहानी
कुछ याद आया, सबने भूतकाल में सुना होगा !
अब भविष्य की सुनो
कोख से बेटी, धरती से पानी
दोनों मिट गए, खत्म कहानी………
सूकून ऐ जन्नत इस दुनिया मैं कहां,
फूरसत तो तुझे मौत ही देगी |
लोग गिरते नहीं थे नज़रों से..!!
इश्क़ के कुछ उसूल थे पहले..
पानी ने भी क्या अजीब खेल रचाया है…..!
“जिसके खेत सूखे-सूखे से थे
“पानी” उसी की आखों में नज़र आया है….!