उन परिंदो को क़ैद करना मेरी फ़ितरत में नही…
जो मेरे पिंजरे में रह कर दूसरो के साथ उधना पसंद करते है…!!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उन परिंदो को क़ैद करना मेरी फ़ितरत में नही…
जो मेरे पिंजरे में रह कर दूसरो के साथ उधना पसंद करते है…!!!
ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले
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उसकी गली के बच्चे आपस में लड़ा दिए मैंने !!
उसने मुझे एक बार क्या देखा ।।
हमने सौ बार आऐना देखा।।
क्या हसीन इत्तेफाक़ था , तेरी गली में आने का.
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किसी काम से आये थे , किसी काम के ना रहे .
मैं कर तो लूँ मुहब्बत फिर से मगर
याद है दिल लगाने का अंजाम अबतक|
जिंदगी मे बस इतना कमाओ की.. जम़ीन पर बैठो तो.. लोग उसे आपका बडप्पन कहें.. औकात नहीं…..
वो बुलंदियाँ भी किस काम की जनाब,,
कि इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जायें…??
कुछ तो बेवफाई हैं मुझमें भी,,
जो अब तक जिंदा हुं तेरे बगैर !
रुकता नही तमाशा रहता है खेल जारी
उस पर कमाल देखिए दिखता नही मदारी|
न किसी हमसफ़र ना हमनशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा, हमीं से निकलेगा!