दरों दीवार से

दरों दीवार से भी कोई बुलाता है मुझे तन्हाई बता मुझे मैं जाऊँ तो किधर जाऊँ…

इसे नसीहत कहूँ

इसे नसीहत कहूँ या एक जुबानी चोट , एक शख्स कह गया गरीब मोहब्बत नहीं करते !

छुपे छुपे से रहते हैं

छुपे छुपे से रहते हैं सरेआम नहीं हुआ करते, कुछ रिश्ते बस एहसास होते हैं उनके नाम नहीं हुआ करते…..

कैसे लिखूं अपने

कैसे लिखूं अपने जज्बातों को मैं, दिल अब उस मुकाम पर है , कि … अश्कों की रौशनाई सूख ही गयी है

लबों से गुफ्तगू

लबों से गुफ्तगू नहीं…आँखों का कलाम अच्छा है…. इन हुस्न वालों से बस…दूर का सलाम अच्छा है..

सिर्फ मोहब्बत ही

सिर्फ मोहब्बत ही ऐसा खेल है.. जो सिख जाता है वही हार जाता है..

किताबें कैसी उठा लाए

किताबें कैसी उठा लाए मय-कदे वाले, ग़ज़ल के जाम उठाओ बड़ा अँधेरा है…

महसूस कर रहें हैं

महसूस कर रहें हैं तेरी लापरवाहियाँ कुछ दिनों से… याद रखना अगर हम बदल गये तो, मनाना तेरे बस की बात ना होगी !!

गले ना सही

गले ना सही ना मिलिए, अदब की बात है,आदाब तो बनता है…

गले मिलने को

गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं, अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं…

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