ऐ किराये के कातिलों बताओ कितनी रकम लगेगी ,
मुझे इश्क का सर कलम चाहिए।।।
Category: बेवफा शायरी
अब क्या मुकाम आता है
देखते हैं अब क्या मुकाम आता है हुज़ूर,
सूखे पत्ते को इश्क़ हुआ है बहती हवा से..
तेरे पास जो हैं
तेरे पास जो हैं उसकी क़द्र कर औऱ सब्र कर दीवाने,
यहाँ तो आसमां के पास भी, खुद की जमीं नहीं हैं…..
सब कुछ है
सब कुछ है नसीब में, तेरा नाम नहीं है
दिन-रात की तन्हाई में आराम नहीं है
मैं चल पड़ा था घर से तेरी तलाश में
आगाज़ तो किया मगर अंजाम नहीं है
मेरी खताओं की सजा अब मौत ही सही
इसके सिवा तो कोई भी अरमान नहीं है
कहते हैं वो मेरी तरफ यूं उंगली उठाकर
इस शहर में इससे बड़ा बदनाम नहीं है….
पहले कभी ये यादें
पहले कभी ये यादें ये तनहाई ना थी,
कभी दिल पे मदहोशी छायी ना थी,
जाने क्या असर कर गयीं उसकी बातें,
वरना इस तरह कभी याद किसी की आयी ना थी।
समुद्र बड़ा होकर भी
समुद्र बड़ा होकर भी,
अपनी हद में रहता है,
जबकि इन्सान छोटा होकर भी
अपनी हद भूल जाता है…
तेरी शब मेरे
तेरी शब मेरे नाम हो जाये
नींद मुझ पर हराम हो जाये
लौट आता है घर परिन्दा भी
इससे पहले कि शाम हो जाये
जो तुम्हारा था
जो तुम्हारा था ही नहीं उसे खोना कैसा,,
जब रहना ही है तनहा तो रोना कैसा..
दीवार क्या गिरी
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की..
लोगों ने मेरे आँगन से रास्ते बना लिए…
आग लगे तो
आग लगे तो शायद अंधेरा पिघले
तेरी चिता की कोख से जब सूरज निकले।