मुख्तसर सी जिंदगी

मुख्तसर सी जिंदगी मेरी तेरे बिन बहुत अधूरी है,
इक बार फिर से सोच तो सही की क्या तेरा खफा रहना बहुत जरूरी है !!

जिस नजाकत से…

जिस नजाकत से…
ये लहरें मेरे पैरों को छूती हैं..
यकीन नहीं होता…
इन्होने कभी कश्तियाँ डुबोई होंगी…

इक मुद्दत से

इक मुद्दत से कोई तमाशा नहीं देखा बस्ती ने

कल बस्ती वालों ने मिल-जुलकर मेरा घर फूंक दिया

इस शहर में

इस शहर में मज़दूर जैसा दर-बदर कोई नहीं..
जिसने सबके घर बनाये उसका घर कोई नहीं..