वापसी का तो कोई सवाल ही नहीं साहब
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,घर से निकले हैं हम आँसूओं की तरह..
Category: बेवफा शायरी
तेरी चाहत ने
तेरी चाहत ने अगर मुझको न मारा होता,
मैं ज़माने में किसी से भी न हारा होता…
शक से भी
शक से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते..
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता|
एक बहाना था
उठाइये
हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़
तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था|
दरख़्त ऐ नीम हूँ
दरख़्त ऐ नीम हूँ, मेरे नाम से घबराहट तो होगी,
छांव ठंडी ही दूँगा, बेशक पत्तों में कड़वाहट तो होगी…
करूँ पेश तुमको
करूँ पेश तुमको नज़राना दिल का, के बन जाए कोई अफ़साना दिल का..
मैं बंद आंखों से
मैं बंद आंखों से पढ़ता हूं रोज़ वो चेहरा,जो शायरी की सुहानी किताब जैसा है.!!
उनकी नजाकत तो देखिये
उनकी नजाकत तो देखिये साहब….
“चाँद सा” जब कहा
तो
कहने लगे” चाँद कहिये ना ”
ये ” चाँद सा ” क्या है…
एक मुद्दत से
एक मुद्दत से तुम निगाहों में समाए हो…!
एक मुद्दत से हम होंश में नहीं हैं ..!!
गलती उनकी नहीं
गलती उनकी नहीं कसूरवार मेरी गरीबी थी दोस्तो
हम अपनी औकात भूलकर बड़े लोगों से दिल लगा बैठे !!