रुख से
नकाब गर, उठ जायेगा तेरा
आ जायेगी कयामत और हश्र होगा।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रुख से
नकाब गर, उठ जायेगा तेरा
आ जायेगी कयामत और हश्र होगा।
बड़े होने का मतलब सिर्फ
बगावत करना नहीं है
इसका मतलब कुछ अपनी कहना कुछ दूसरो
की सुनना भी है
जो नहीं है पर दिखाई देता है ,वह
संसार है,
जो है पर दिखाई नहीं देता, वह परमात्मा है।
ऊपर जिसका अंत नही उसे आंसमा कहते हैं और इस जंहा मे जिसका अंत नही उसे मां कहते हैं
प्रतिभा
एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानबे प्रतिशत पसीना है.
कोई तो लिखता होगा इन कागजों और पत्थरों का भी नसीब ।
वरना मुमकिन नहीं की कोई पत्थर ठोकर खाये और कोई पत्थर भगवान बन जाए ।
और कोई कागज रद्दी और कोई कागज गीता और कुरान बन जाए ।।
सफलता कभी भी ‘पक्की’ नहीं होती,
तथा असफलता कभी भी ‘अंतिम’ नहीं होती !!
इस लिए अपनी कोशिश को,
तब तक जारी रखो,
जबतक आपकी ‘ जीत ‘,
एक ‘इतिहास’ ना बन जाये!!
अलग दुनिया से हटकर भी कोई दुनिया है मुझमें,
फ़क़त रहमत है उसकी और क्या मेरा है मुझमें.
मैं अपनी मौज में बहता रहा हूँ सूख कर भी,
ख़ुदा ही जानता है कौनसा दरिया है मुझमें.
इमारत तो बड़ी है पर कहाँ इसमें रहूँ मैं,
न हो जिसमें घुटन वो कौनसा कमरा है मुझमें.
दिलासों का कोई भी अब असर होता नहीं है,
न जाने कौन है जो चीख़ता रहता है मुझमें.
नहीं बहला सका हूँ ज़ीष्त का देकर खिलौना
कोई अहसास बच्चे की तरह रोता है मुझमें.
सभी बढ़ते हुए क्यों आ रहे हैं मेरी जानिब,
कहाँ जाता है आखि़र कौनसा रस्ता है मुझमें.
गले से
उन को लगाया तो बुरा मान गये!
यूँ नाम ले के बुलाया तो बुरा मान गये!
ये हक़ उसी ने दिया
था कभी मुज को लेकिन;
जो आज प्यार जताया तो बुरा मान गये!
जो मुद्द्तों से मेरी नींद
चुरा बैठे है;
में उस के ख्वाब में आया तो बुरा मान गये!
जब कभी साथ में होते थे, गुनगुनाते
थे;
आज वो गीत सुनाया तो बुरा मान गये!
हंमेशा खुद ही निगाहों से वार करते थे;
जो तीर
हम ने चलाया तो बुरा मान गये!
सुबह से संदेशे तो बहुत आये लेकिन मेहमान कोई नही आया. सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं.
दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है. संदेशें आते जा रहे हैं. बधाईयों का तांता है . लेकिन मेहमान नदारद है .
ये है आज के दौर की दीवाली.
मित्रों, घर के आसपास के पडौसी अगर छोड़ दें तो त्यौहार पर मिलने जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है. पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते है लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है. वो खुद नही आते.
दरअसल घर अब घर नही रहा. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर एक स्लीप स्टेशन है. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये. घर अब सिर्फ घरवालों का है. घर का समाज से कोई संपर्क नही है. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं. हमे स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नही रहा. अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा है.
वैसे भी शादी अब मेरिज हाल में होती है. बर्थडे मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है. बीमारी में नर्सिंग होम में खैरियत पूछी जाती है. और अंतिम आयोजन के लिए सीधे लोग घाट पहुँच जाते है.
सच तो ये है कि जब से डेबिट कार्ड और एटीएम आ गये है तब से मेहमान क्या …चोर भी घर नही आते.
मे सोचता हूँ कि चोर आया तो क्या ले जायेगा…फ्रिज, सोफा, पलंग, लैप टॉप..टीवी…कितने में बेचेगा इन्हें चोर? अरे री सेल तो olx ने चौपट कर दी है. चोर को बचेगा क्या ? वैसे भी अब कैश तो एटीएम में है इसीलिए होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है.
सच तो ये है कि अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट को लेकर ही बचा है.
जी हाँ….क्या घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिये ?