दिल-ए-वहशी

दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की

दिवाना है लेकिन बात करता है ठिकाने की |

अभी तो मेरी ज़रुरत है

अभी तो मेरी ज़रुरत है मेरे बच्चों को
बड़े हुए तो ये ख़ुद इन्तिज़ाम कर लेंगे

इसी ख़याल से हमने ये पेड़ बोया है
हमारे साथ परिंदे क़याम कर लेंगे |