उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है,
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती….!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है,
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती….!!
तेज़ रफ़्तार हुआ है, ज़माना इतना के..
लोग मर जाते है, जीने का हुनर आने तक |
मुझे घमंड था की मेरे चाहने वाले बहुत हैं इस दुनिया में,
लेकिन बाद में पता चला की सब चाहते हैं, अपनी जरूरत के लिए..
तेरे इश्क में उन ऊंचाइयों को पा लिया हमने ।
की आँसू पलकों तक आते तो है ,
पर गिरते नहीं ।।
दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की
दिवाना है लेकिन बात करता है ठिकाने की |
अभी तो मेरी ज़रुरत है मेरे बच्चों को
बड़े हुए तो ये ख़ुद इन्तिज़ाम कर लेंगे
इसी ख़याल से हमने ये पेड़ बोया है
हमारे साथ परिंदे क़याम कर लेंगे |
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो |
अपने ही तोड देते हैं यहां वरना गैरौ को क्या पता कि
दिल की दीवार कहा से कमजोर है…
न जख्म भरे ; न शराब सहारा हुई.
न वो वापस लौटी ….ना मोहब्बत दोबारा हुई….!!
थोडी ही सही
पर बातो की तेरी जो धूप ना पडे मुझ पर
तो धुन्धदला-सा जाता हू मैं..