मौसम को इशारों से

मौसम को इशारों से बुला क्यूँ नहीं लेते
रूठा है अगर वो तो मना क्यूँ नहीं लेते

दीवाना तुम्हारा है कोई ग़ैर नहीं है
मचला भी तो सीने से लगा क्यूँ नहीं लेते

ख़त लिख कर कभी और कभी ख़त को जलाकर
तन्हाई को रंगीन बना क्यूँ नहीं लेते

तुम जाग रहे हो, मुझे अच्छा नहीं लगता
चुपके से मेरी नींद चुरा क्यूँ नहीं लेते |

इस तरह मिली वो मुझे

इस तरह मिली वो मुझे सालों के बाद,
जैसे हक़ीक़त मिली हो ख़यालों के बाद,
मैं पूछता रहा उस से ख़तायें अपनी,
वो बहुत रोई मेरे सवालों के बाद|

कुछ लोग कहते है

कुछ लोग कहते है की बदल गया हूँ मैं,
उनको ये नहीं पता की संभल गया हूँ मैं,
उदासी आज भी मेरे चेहरे से झलकती है,
पर
अब दर्द में भी मुस्कुराना सीख गया हूँ मैं|

तख्तियां अच्छी नहीं लगती

तख्तियां अच्छी नहीं लगती,
मुझे उजड़ी हुई ये बस्तियां अच्छी नहीं लगती !

चलती तो समंदर का भी सीना चीर सकती थीं,
यूँ साहिल पे ठहरी कश्तियां अच्छी नहीं लगती !

खुदा भी याद आता है ज़रूरत पे यहां सबको,
दुनिया की यही खुदगर्ज़ियां अच्छी नहीं लगती !

उन्हें कैसे मिलेगी माँ के पैरों के तले जन्नत,
जिन्हें अपने घरों में बच्चियां अच्छी नहीं लगती !