कभी-कभी बहुत सताता है यह सवाल मुझे..
हम मिले ही क्यूं थे जब हमें मिलना ही नहीं था…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कभी-कभी बहुत सताता है यह सवाल मुझे..
हम मिले ही क्यूं थे जब हमें मिलना ही नहीं था…
सच्ची महोब्बत को कब मुकाम मिला
न मीरा को मोहन मिला न राधा को श्याम मिला |
तू नही तो तो तेरे बिन दस बीस भी हो तो क्या
इक्कीस हो बाईस हो तेईस हो तो क्या…
तरक्की की फसल हम भी काट लेते,
थोडे से तलवे अगर हम भी चाट लेते….
हाँ ! बस मेरे लहजे में “जी हुजूर”न था,
इसके अलावा मेरा कोई कसूर न था..
अगर पल भर को भी मैं बे-जमीर हो जाता,
यकीन मानिए,मै कब का वजीर हो जाता…..
तेरा ख़याल तेरी आरजू न गयी, मेरे दिल से तेरी जुस्तजू न गयी,
इश्क में सब कुछ लुटा दिया हँसकर मैंने, मगर तेरे प्यार की आरजू न गयी…
कितने सालों के इंतज़ार का सफर खाक हुआ ।
उसने जब पूछा कहो कैसे आना हुआ|
तेरी जगह आज भी कोइ नहीं ले सकता,
पता नहीं वजह तेरी खूबी है या मेरी कमी।
ऐ मेरे पाँव के छालों
ज़रा लहू उगलो..,
सिरफिरे मुझसे सफ़र के निशान माँगेगे..!!
अपनों की चाहतों में मिलावट थी इस कदर की
मै तंग आकर दुश्मनों को मनाने चला गया |
कोशिश न कर,
तू सभी को ख़ुश रखने की,
नाराज तो यहाँ, कुछ लोग…
खुदा से भी हैं….!!