सच्चाई के आईने

सच्चाई के आईने, काले हो गये।
बुजदिलो के घर मेँ, उजाले हो गये॥

झुठ बाजार मेँ, बेखौफ बिकता रहा।
मैने सच कहा तो, जान के लाले हो गये॥……

लहू बेच-बेच कर, जिसने परिवार को पाला ।
वो भुखा सो गया, जब बच्चे कमानेवाले हो गये।

किसी के नहीं होते

आसमां पे ठिकाने किसी के नहीं होते,
जो ज़मीं के नहीं होते, वो कहीं के नहीं होते..!!

ये बुलंदियाँ किस काम की दोस्तों…
की इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जायें….

उस को भी

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं…
इश्क़ ही इश्क़ की क़ीमत हो ज़रूरी तो नहीं…..

हारने के बाद

हारने के बाद इंसान नहीं टूटता…..

हारने के बाद लोगों का रवय्या उसे टूटने पर मज़बुर करता है…..