अपनों को तनहा

मैंने पत्थरों को भी रोते देखा है झरने के रूप में..
मैंने पेड़ों को प्यासा देखा है सावन की धूप में…!
घुल-मिल कर बहुत रहते हैं लोग जो शातिर हैं बहुत…
मैंने अपनों को तनहा देखा है बेगानों के रूप मे….!!!!

किसी ने अपना बनाया

किसी ने अपना बनाया, बना के छोङ दिया
मुझे गले से लगाया, लगा के छोङ दिया
गले से लगके मिले गैरों से वो महफिल मे
हमारा हाथ दबाया, दबाके छोङ दिया
मेरे सलाम का इस नाज से दिया है जवाब
अदब से हाथ उठाया, उठा के छोङ दिया