घर की इस बार मुकम्मल मै तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मेरे माँ बाप कहाँ रखते है..
Category: पारिवारिक शायरी
सन्नाटा छा गया
सन्नाटा छा गया बटवारे के किस्से में,
जब माँ ने पूछा मै हूँ किसके हिस्से मे|
दिल से ज्यादा
दिल से ज्यादा महफूज़ जगह कोई नही मगर,
सबसे ज्यादा लोग यहीं से ही लापता होते हैं।
घर की इस बार
घर की इस बार मुकम्मल मै तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मेरे माँ बाप कहाँ रखते है..
सिमटते जा रहे हैं
सिमटते जा रहे हैं दिल और ज़ज्बातों के रिश्ते ।
सौदा करने में जो माहिर है बस वही कामयाब है।
साज़िशें लाखों बनती हैं
साज़िशें लाखों बनती हैं, मेरी हस्ती मिटाने की! बस दुआएँ मेरी माँ की, उन्हें मुकम्मल होने नहीं देतीं।
रात थी और स्वप्न था
रात थी और स्वप्न था तुम्हारा अभिसार था !
कंपकपाते अधरद्व्य पर कामना का ज्वार था !
स्पन्दित सीने ने पाया चिरयौवन उपहार था ,
कसमसाते बाजुओं में आलिंगन शतबार था !!
आखेटक था कौन और किसे लक्ष्य संधान था !
अश्व दौड़ता रात्रि का इन सबसे अनजान था !
झील में तैरती दो कश्तियों से हम मिले ,
केलिनिश का काल प्रिये मायावी संसार था !!
चंचल चूड़ी निर्लज्जा कौतक सब गाती रही !
सहमी हुई श्वास भी सरगम सुनाती रही !
मलयगिरी से आरोहित राहों के अवसान थे ,
प्रणय सिंधु की भाँवर में छाया हाहाकार था !!
नेह की अभिलाष भरी लालसा फिर तुम बनी !
मद भरा दो चक्षुओं में मदालसा फिर तुम बनी !
वेणी खुलकर यूँ बिखरी और रात गमक उठी ,
शशि धवल मुख देख खुद चाँद शर्मसार था !!
अगर इतनी नफरत है
अगर इतनी नफरत है मूझसे..,,तो कोई ऐसी दुआ कर की.तेरी दुआ भी पुरी हो जाए..,और मेरी जिंदगी भी ।
मै रंग हुँ
मै रंग हुँ तेरे चेहरे का….
जितना तू खुश रहेगा
उतना ही मै निखरती जाऊँगी.!!
आदत पड गयी है
आदत पड गयी है सभी को ,
प्यार अब हर किसी को कहां होता है ??