याद आने की वज़ह बहुत अज़ीब है तुम्हारी …. तुम वो गैर थे जिसे मेने एक पल में अपना माना !!
Category: पारिवारिक शायरी
सुंदरता हो न हो
सुंदरता हो न हो सादगी होनी चाहिये. खुशबू हो न हो महक होनी चाहिये. रिश्ता हो न हो बंदगी होनी चाहिये. मुलाकात हो न हो बात होनी चाहिये. यु तो हर कोई उलझा है अपनी उलझनों मे सुलझन हो न हो सुलझाने कि कोशिश होनी चाहिये।
जरुरतों ने कुचल डाला है
जरुरतों ने कुचल डाला है मासूमियत को साहब यूं.. वक्त से पहले ही बचपन रूठ गया|
हर घड़ी ख़ुद से
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा मुद्दतें बीत गईं इक ख़्वाब सुहाना… Continue reading हर घड़ी ख़ुद से
मेरे इश्क़ का
मुझे अपने लफ़्जो से आज भी शिकायत है, ये उस वक़त चुप हो गये जब इन्हें बोलना था…
कुछ ऐसे लगाव
कुछ ऐसे लगाव और चाहते होती हैं हाथो में हाथ नही होते और रूह से रूह बंधी होती है……
ज़रा ज़िद्दी हूँ
ज़रा ज़िद्दी हूँ ख़्वाब देखने से बाज़ नहीं आता, इतनी सी बात पर हकीक़तें रूठ जाती है मुझसे…
पाकीज़ा दिलों की
पाकीज़ा दिलों की तो , कुछ बात ही अलग है , मिलता है जिससे भी , वजूद महक जाता है ॥
फासला भी ज़रूरी है
फासला भी ज़रूरी है चिराग रोशन करते वक्त तजुर्बा यह हाथ आया हाथ जल जाने के बाद|
सोचता हूँ एक
सोचता हूँ एक शमशान बना लुँ दिल के अंदर मरती है रोज ख्वाईशें एक एक करके….!!!!