वो इश्क ही क्या,
जो सलामत छोड़ दे…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
वो इश्क ही क्या,
जो सलामत छोड़ दे…
ये सुनकर मेरी नींदें उड़ गयी,,,
कोई मेरा भी सपना देखता है…
इतना काफी है के तुझे जी रहे हैं,,,,
ज़िन्दगी इससे ज़्यादा मेरे मुंह न लगाकर…!!
सुकून मिला है मुझे आज बदनाम होकर…
तेरे हर एक इल्ज़ाम पे यूँ बेज़ुबान होकर….
किसी को चाहना ऐसा की वो रज़ा हो जाए…
जीना जीना ना रहे एक सज़ा हो जाए…
ख़ुद को क़त्ल करना भी एक शौक़ लगे…
हो ज़ख़्मों में दर्द इतना की दर्द मज़ा हो जाए…
मेरी मुहब्बत अक्सर ये सवाल करती है…
जिनके दिल ही नहीं उनसे ही दिल लगाते क्यूँ हो…
इस मुक़द्दर की सिर्फ़ मुझसे ही अदावत क्यूँ हैं…
गर मुहब्बत है तो मुझे तुझसे ही मुहब्बत क्यूँ है…
कागज कोरा ही रहने दीजिऐ
वरना बेवजह दर्द ब्यान हो जाऐगा !
न जाने क्यूँ हमें इस दम तुम्हारी याद आती है,
जब आँखों में चमकते हैं सितारे शाम से पहले….
आऊंगा मै इक रोज तेरा दर्द पूछने
ख़ुदा जो दे गर मुझे मेरा दर्द भूलने|