मेरी आँखों में आँसू की तरह एक रात आ जाओ,
तकल्लुफ से, बनावट से, अदा से…चोट लगती है।
Category: दर्द शायरी
गुज़रे इश्क़ की
गुज़रे इश्क़ की गलियों से और समझदार हो गए,
कुछ ग़ालिब बने यहाँ कुछ गुलज़ार हो गए।
अपनी मौजूदगी का
अपनी मौजूदगी का एहसास दिला दिया कर,
थक गया हूँ शायरियां करते-करते।
किसी मासूम बच्चे के
किसी मासूम बच्चे के तबस्सुम में उतर जाओ,,,,
तो शायद ये समझ पाओ, की ख़ुदा एैसा भी होता है
उम्र का बढ़ना
उम्र का बढ़ना तो दस्तूर- ए जहाँ है
मगर
महसूस ना करो तो उम्र बढ़ती कहाँ है ?
कितनीं मोहब्बत हैं
कितनीं मोहब्बत हैं तुमसे कोई सफाई नहीं देंगें…
साये की तरह साथ रहेंगे पर दिखाई नहीं देंगें……!!!!!!
मुकम्मल हो ही नहीं
मुकम्मल हो ही नहीं पाती कभी तालीमे मोहब्बत…
यहाँ उस्ताद भी ताउम्र एक शागिर्द रहता है…!!
ऐसा तो कभी हुआ नहीं
ऐसा तो कभी हुआ नहीं,
गले भी मिले, और छुआ नहीं!
ख़ाक से बढ़कर
ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती,
छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती।
पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे,
अब शहर जलें तो हैरत नहीं होती।
इतना शौक मत रखो
इतना शौक मत रखो इन इश्क की गलियों में जाने का,
क़सम से रास्ता जाने का है पर आने का नहीं।