आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?
हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?
हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !
मेरी ज़िन्दगी को जब मैं करीब से देखता हूँ
किसी इमारत को खड़ा गरीब सा देखता हूँ
आइने के सामने तब मैं आइने रखकर
कहीं नहीं के सामने फिर कुछ नहीं देखता हूँ|
घर अधूरा खाट बिना, तराजू अधूरा बाट बिना, राजा अधूरा ठाठ बिना, देश अधूरा जाट बिना|
नींद तो आने को थी पर दिल पुराने किस्से ले
बैठा
अब खुद को बे-वक़्त सुलाने में कुछ वक़्त लगेगा|
हुआ जब इश्क़ का एहसास उन्हें;
आकर वो पास हमारे सारा दिन रोते रहे;
हम भी निकले खुदगर्ज़ इतने यारो कि;
ओढ़ कर कफ़न, आँखें बंद करके सोते रहे।
बिना मतलब के दिलासे भी नहीं मिलते यहाँ ,
लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते हैं |
मुझसे नफरत ही करनी है तो,,
इरादे मजबूत रखना।।
जरा सा भी चुके तो मोहब्बत हो जायेगी|
तुमको दे दी है इजा़ज़त मैने इशारों से
मांगने से ना मिलूं तो चुरा लेना मुझको
रूठा हुआ है मुझसे इस बात पर ज़माना…!!!
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शामिल नहीं है मेरी फ़ितरत में सर झुकाना…!!!
घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा
हम तेरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं !