कद्र मेरी ना समझी

कद्र मेरी ना समझी खुदगर्ज जमाने ने,
मेरी कीमत को आंका शहर के बुतखाने ने,
कुसूर तेरा न था सब खतायें मेरी थी,
खुद को बर्बाद कर लिया तुम्हे आजमाने में,
जिन जमीनों पर तुमने पैरों के निशान छोडे हैं,
वहीं सजदे किये हैं तेरे इस दिवाने ने,
तेरे दिल के अंजुमन से जब रुख्सत हो गये,
तब कहीं पनाह दी हमें इस मयखाने ने!

जिन्दंगी को समझना

जिन्दंगी को समझना बहुत मुशकिल हैं. कोई सपनों की खातिर “अपनों” से दूर रहता हैं..
और , कोई “अपनों” के खातिर सपनों से दूर …!!

छोड दी हमने

छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी, आरजू करना,
जिसे मोहब्बत, की कद्र ना हो उसे दुआओ, मे क्या मांगना…

दिल चाहता है

दिल चाहता है कि बहुत करीब से देखूँ तुम्हें
पर नादान आंखे तेरे करीब आते ही बंद हो जाती हैं|