लिख कर बयां नही कर सकता
मैं हर गुफ़्तुगू,
कुछ था जो बस नज़रों से
नज़रों तक ही रहा..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लिख कर बयां नही कर सकता
मैं हर गुफ़्तुगू,
कुछ था जो बस नज़रों से
नज़रों तक ही रहा..
बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में,
इस ख़बर पर हम ने भी,
गुल-दान ख़ाली कर दिया|
ये जो तेरा होकर भी ना होने का अहसास है…
बस ये अधूरापन ही मुझे जीने नहीं देता|
उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा,
ज़िंदगी भर तजुरबों के ज़ख़्म काम आते रहे…
बस इतना ही जाना है मुझे तुमने
दूर ही रहो जितना, जेहन में उतर आऊंगा|
तुम दूर भी हो पर लगता है यही हो
तुम कहो इश्क़ में तुम्हारा क्या हाल है|
मेरा ज़िक्र ही नहीं उस किताब में
जिसे ताउम्र पढता रहा हूँ मैं
तू भले ही रत्ती भर ना सुनती है
मै तेरा नाम बुदबुदाता रहता हूँ
मेरा सब से बड़ा डर यह है,
कि कहीं आप मुझे भूल तो नहीं जाओगे !!
मुझे कहाँ से आएगा
लोगो का दिल जीतना …!!
मै तो अपना भी
हार बैठी हूँ..!!