कहानी खत्म हो तो कुछ ऐसे खत्म हो की…
लोग रोने लगे तालिया बजाते बजाते…।।
Category: गुस्ताखियां शायरी
वो मुझको डसता तो है
वो मुझको डसता तो है पर ज़हर नहीं छोड़ता…
लिहाज़ रखता है कुछ मेरी आस्तीन में पलने का…
घर चाहे कैसा भी हो
घर चाहे कैसा भी हो,
उसके एक कोने में,
खुलकर हंसने की जगह रखना,
सूरज कितना भी दूर हो, उसको घर आने का रास्ता देना,
कभी कभी छत पर चढ़कर
तारे अवश्य गिनना,
हो सके तो हाथ बढ़ा कर,
चाँद को छूने की कोशिश करना,
अगर हो लोगों से मिलना जुलना तो,
घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना,
भीगने देना बारिश में,
उछल कूद भी करने देना,
हो सके तो बच्चों को,
एक कागज़ की किश्ती चलाने देना,
कभी हो फुरसत,आसमान भी साफ हो,तो एक पतंग आसमान में चढ़ाना,
हो सके तो एक छोटा सा पेंच भी लड़ाना,
घर के सामने रखना एक पेड़,
उस पर बैठे पक्षियों की बातें अवश्य सुनना,
घर के एक कोने में खुलकर हँसने की जगह रखना|
कभी लिखे नहीं जाते…
सिर्फ महसूस किये जाते हैं ..
कुछ एहसास कभी लिखे नहीं जाते…
जिंदगी के मंच पर
जिंदगी के मंच पर तू किस तरह निभा अपना किरदार… की परदा गिर भी जाये … तालिया बजती रहे ।
आये हो निभाने जब
आये हो निभाने जब किरदार जमी पर
कुछ ऐसा करो कि परदा गिर जाये मगर तालियां फिर भी बजती रहे|
पहले सौ बार
पहले सौ बार इधर और उधर देखा है
तब कहीं डर के तुम्हें एक बार देखा है|
खुल जाता है
खुल जाता है तेरी यादों का बाजार सुबह सुबह,
और हम उसी रौनक में पूरा दिन गुजार देते है !!
आए हो निभाने जब
आए हो निभाने जब क़िरदार ज़मीं पर,
कुछ ऐसा कर चलो कि ज़माना मिसाल दे|
उन लोगों को
उन लोगों को दर्द के सिवा और कुछ नहीं मिलता,
जो दूसरों से हद से ज्यादा उम्मीद लगा लेते है !!