काश यह जालिम जुदाई न होती!
ऐ खुदा तूने यह चीज़ बनायीं न होती!
न हम उनसे मिलते न प्यार होता!
ज़िन्दगी जो अपनी थी वो परायी न होती!
Category: गुस्ताखियां शायरी
जुदाई की शाम आई थी
अभी अभी जो जुदाई की शाम आई थी
हमें अजीब लगा ज़िन्दगी का ढल जाना|
उससे छुपायीं थी …
कुछ बाते उससे छुपायीं थी …
और कुछ कागज़ों को बतायीं थी …
मेरे लफ़्ज़ों को
मेरे लफ़्ज़ों को अब भी नशा है तुम्हारा …
निकल कर ज़हन से, कागज़ों पर गिर पड़ते हैं …
कुछ बाते उससे
कुछ बाते उससे छुपायीं थी …
और कुछ कागज़ों को बतायीं थी …
किसी किताब का
कहीं तुम भी न बन जाना किरदार किसी किताब का लोग बड़े शौक से पड़ते है कहानिया बेवफाओं की….
प्यार अपनों का
प्यार अपनों का मिटा देता है इंसान का वजूद ,
जिंदा रहना है तो गैरों की नज़र में रहिये…….
तुझ पे उठ्ठी हैं
तुझ पे उठ्ठी हैं वो खोई हुयी साहिर आँखें..
तुझ को मालूम है क्यों उम्र गवाँ दी हमने…
तू छोड़ रहा है तो
तू छोड़ रहा है तो इसमें तेरी ख़ता क्या हर शख़्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता !!
आईना होजाये
आईना होजाये मेरा इश्क़, उनके हुस्न का ….
क्या मज़ा हो दर्द,अगर खुद ही दवा लेने लगे…