फासलें इस कदर हैं आजकल रिश्तों में…
जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
फासलें इस कदर हैं आजकल रिश्तों में…
जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में…
बड़ा फर्क है तेरी और मेरी मोहब्बत
में…तू परखता रहा और हमने ज़िंदगी
यकीन में गुजार दी…!!
मुझे यक़ीन है मोहब्बत इसी को कहते हैं,
के ज़ख्म ताज़ा रहे और निशाँ चला जाये …!!!
यही तय जानकर कूदो, उसूलों की लड़ाई में,
कि रातें कुछ न बोलेंगी, चरागों की सफाई में…
बताओ और क्या तब्दील करूं मैं खुद को…
कशमकश को कश में बदल दिया मैंने…
रात भर तारीफ करता रहा तेरी चाँद से..
चाँद इतना जला कि सुबह तक सूरज हो गया..
बड़ी मुश्किल से सुलाया है ख़ुद को मैंने,
अपनी आँखों को तेरे ख़्वाब क़ा लालच देकर..
तहजीब की मिसाल गरीबो के घर पे है,
दुपट्टा फटा हुआ है फिर भी उनके सर पर है।।
आँखों मे ख्वाब उतरने नही देता,
वो शख्स मुझे चैन से मरने नही देता…
बिछड़े तो अजब प्यार जताता है खतों मे,
मिल जाए तो फिर हद से गुजरने नही देता… !!!
मैंने यादें उठाकर देखी हैं…..
इक वक्त ऐसा भी था जब तुम मेरे थे|