कुछ जख़्मों की कोई उम्र नही होती…साहेब
ताउम्र साथ चलते है ज़िस्म के ख़ाक होने तक…….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ जख़्मों की कोई उम्र नही होती…साहेब
ताउम्र साथ चलते है ज़िस्म के ख़ाक होने तक…….
मुख्तसर सी जिंदगी मेरी तेरे बिन बहुत अधूरी है,
इक बार फिर से सोच तो सही की क्या तेरा खफा रहना बहुत जरूरी है !!
कहती है मुझसे की तेरे साथ रहूँगी सदा,
बहुत प्यार करती है, मुझसे तन्हाई मेरी !!
जिस नजाकत से…
ये लहरें मेरे पैरों को छूती हैं..
यकीन नहीं होता…
इन्होने कभी कश्तियाँ डुबोई होंगी…
मैंने कब तुझसे तेरे जाने की वजह पूछी है,पर मुझे छोड़ने से पहले कोई इलज़ाम तो लगा !!
ऐसा तो कभी हुआ नहीं,
गले भी मिले, और छुआ नहीं!
मुद्दत के बाद उसने जो आवाज दी मुझे…
कदमों की क्या बिसात, साँसें ही थम गयी…!!!
कोई पूछे मेरे बारे में,
तो कह देना इक लम्हा था जो गुज़र गया।
कोई पूछे तेरे बारे में,
मैं कह दूंगा इक लम्हा था जो मैं जी गया।
उसने पुछा जिंदगी किसने बरबाद की ,
हमने ऊँगली उठाई और अपने ही दिल पर रख ली…
बैठें तो किस उम्मीद पर बैठे रहे यहाँ,
उठे तो उठ के जायें कहाँ तेरे दर से हम।