काँच की सुर्ख़ चूड़ी
मेरे हाथ में
आज ऐसे खनकने लगी है
जैसे कल रात शबनम में लिक्खी हुई
तेरे हाथ की शोख़ियों को
हवाओं ने सुर दे दिया हो |
Category: गरीबी शायरी
खामोश रह के भी
खामोश रह के भी बहुत चुभते है जिंदगी भर , क्यू , की दर्द देने वाला हर जख्म शोर नहीं मचाता
ना कर सपने मेरे पूरे
ना कर सपने मेरे पूरे , बस इतना काम करदे तू ….
जो मेरे दिल में रहता है , मेरे नाम करदे तू ….!!!
दुआ कोन सी
दुआ कोन सी थी हमें याद नहीं,
बस इतना याद है दो हथेलियाँ जुड़ी थी एक तेरी थी एक मेरी थी..
क्या खबर तुमने
क्या खबर तुमने कहाँ किस रूप में देखा मुझे,
मै कहीं पत्थर,कहीं मिट्टी और कहीं आईना था..
महफ़िल में हँसना
महफ़िल में हँसना हमारा मिजाज बन गया,
तन्हाई में रोना एक राज बन गया,
दिल के दर्द को चेहरे से जाहिर न होने दिया,
बस यही जिंदगी जीने का अंदाज बन गया।
करनी है तो
करनी है तो दर्द की साझेदारी कर ले,
मेरी खुशियों के तो दावेदार बहुत हैँ..
बड़े निककमें है
बड़े निककमें है ये इश्क़ वाले कबूतर
दाल की जात का सवाल नहीं करते |
इतनी वफ़ादारी न कर
इतनी वफ़ादारी न कर किसी से यूँ मदहोश होकर…..
ये दुनियाँ वाले….. एक ख़ता के बदले ….सारी वफाएँ भुला देते है…..
खुद बैठा बैठा
खुद बैठा बैठा मैं यूँ ही गुम हो जाता हूँ!
मैं अक्सर मैं नही रहता तुम हो जाता हूँ!!