चींटियां इर्द गिर्द थीं मेरे
तल्ख़ होना बहोत ज़रूरी था|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
चींटियां इर्द गिर्द थीं मेरे
तल्ख़ होना बहोत ज़रूरी था|
इश्क़ नाजुक है बहुत अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता|
ये शायरी भी दिल बहलाने का एक तरीक़ा है साहब
जिसे हम पा नही सकते उसे अल्फ़ाज़ो में जी लेते है |
ज़िन्दगी जब चुप सी रहती है मेरे खामोश सवालो पर
तब दिल की जुबाँ स्याही से पन्नें सजाती है|
ये जान भी निकलेगी थोड़ा इंतज़ार तो कर
तेरे इश्क़ ने मारा है बचूँगा नहीं|
हम न समझे थे बात इतनी सी ,
ख्वाब शीशे के दुनिया पत्थर की…
लफ्जों से फतह करता हूँ
लोगों के दिलों को…”यारों…!”
मैं ऐसा बादशाह हूँ जो
कभी लश्कर नहीं रखता हूँ…!
चलो इश्क़ में कुछ यु अंदाज़ अपनाते हैं तुम आँखें बंद करो हम तुम्हे सीने से लगाते हैं|
देख के दुनिया को हम भी बदलेंगे अपने मिज़ाज ए ज़िन्दगी ….
..राब्ता सबसे होगा वास्ता किसी से नहीं|
हर बात मानी है सर झुकाकर तेरी ए ज़िन्दगी ….
हिसाब बराबर कर तू भी तो कुछ शर्ते मान मेरी……