आसाँ कहाँ था

आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?

हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !

छोड दी हमने

छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी, आरजू करना,
जिसे मोहब्बत, की कद्र ना हो उसे दुआओ, मे क्या मांगना…

दिल चाहता है

दिल चाहता है कि बहुत करीब से देखूँ तुम्हें
पर नादान आंखे तेरे करीब आते ही बंद हो जाती हैं|