इस सलीक़े से मुझे क़त्ल किया है उसने अब भी दुनिया ये समझती है की ज़िंदा हूँ मैं !!
Category: शायरी
कल्पना का सफ़र
कल्पना का सफ़र कितना कठिन होता है… मेरी सोचों के तल्वे ही छिल गए हैं…
ज़िंदगी में बार बार
ज़िंदगी में बार बार सहारा नही मिलता, बार बार कोई प्यार से प्यारा नही मिलता, है जो पास उसे संभाल के रखना, खो कर वो फिर कभी दुबारा नही मिलता !
ख़्वाबों के पीछे
ख़्वाबों के पीछे जिंदगी उलझा ली इतनी.. हकीकत में रहने का सलीका ही भूल गए।।
बुझ जाओ तो अँधेरा
बुझ जाओ तो अँधेरा, जल जाओ तो शमा रौशन, देखने वाले को भी, नज़रे हुनर चाहिये !!
जब देखने वाला
जब देखने वाला कोई नहीं बुझ जाओ तो क्या जल जाओ तो क्या |
तुझको हुई ना खबर
तुझको हुई ना खबर, न ज़माना समझ सका हम चुपके चुपके तुझ पे यूँ कई बार मर गये|
कभी चिरागों कें बहानें
कभी चिरागों कें बहानें मिल जाया करती थी हसरतों को मंजिलें आज रौंशनी हैं गजब की मगर साया ही नजर नही आता कोई|
उसने कहा हमसे
उसने कहा हमसे.. हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे… हमने मुस्कुरा के पूछा… क्या तुम भी मोहब्बत करोगे अब हमसे..?
बदल जाते है
बदल जाते है वो लोग वक़्त की तरह, जिन्हें हद से ज़्यादा वक़्त दे दिया जाये…