लाख पता बदला …..
मगर पहुँच ही गया…
ये ग़म भी था कोई
“डाकिया” ज़िद्दी सा…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लाख पता बदला …..
मगर पहुँच ही गया…
ये ग़म भी था कोई
“डाकिया” ज़िद्दी सा…
सहम सी गई है ख्वाहिशें…
ज़रूरतों ने शायद
ऊँची आवाज़ में बात की है…
उसने जी भर के मुझको चाहा था…,
फ़िर हुआ यूँ कि उसका जी भर गया।
ये फैसला तो शायद
वक़्त भी न कर सके
सच कौन बोलता है,
अदाकार कौन है।
तफ़सील से तफ्तीश जब
हुई मेरी गुमशुदगी की,
मैं टुकड़ा टुकड़ा बरामद
हुआ उनके ख्यालों में..!!
बदलने को हम भी बदल जाते…
फिर अपने आप को
क्या मुंह दिखाते |
ख़ामोश सा शहर और
गुफ़्तगू की आरज़ू,
हम किससे करें
बात कोई बोलता ही नहीं…
बड़ी हसरत से सर पटक पटक के गुजर गई,
कल शाम मेरे शहर से आंधी,
वो पेड़ आज भी मुस्कुरा रहें हैं,
जिन में हुनर था थोडा झुक जाने का ।।।
जुड़ना सरल है…
पर जुड़े रहना कठिन….
आज इत्ती ज़ोर से हिचकी आ रही है,
जैसे कोई जान से मारने
के लिए याद कर रहा हो..