कभी हर्श पर

कभी हर्श पर , कभी फर्श पर…
कभी तेरा दर, कभी दरबदर…
गमे आशिक़ी तेरा शुक्रिया…
में कहा कहा से गुज़र गया .

मुझ पे एहसान है

मेरे टूटे हुए पाए तलब का मुझ पे एहसान है।
तेरे दर से उठ कर कहि अब जाया नही जाता।

मोहब्बत असल में मक्कमूल वो राजे हकीकत है ।
समझ में आ गया है पर समझाया नही जाता ।

मोहब्बत के लिए कुछ खास दिल मक्कसुस होते है ।
ये वो नगमा है जो हर साज पे गाया नही जाता।