आसाँ कहाँ था

आसाँ कहाँ था कारोबार-ए-इश्क
पर कहिये हुजूर , हमने कब शिकायत की है ?

हम तो मीर-ओ-गालिब के मुरीद हैं
हमेशा आग के दरिया से गुजरने की हिमायत की है !

मेरी ज़िन्दगी को

मेरी ज़िन्दगी को जब मैं करीब से देखता हूँ
किसी इमारत को खड़ा गरीब सा देखता हूँ

आइने के सामने तब मैं आइने रखकर
कहीं नहीं के सामने फिर कुछ नहीं देखता हूँ|

हुआ जब इश्क़

हुआ जब इश्क़ का एहसास उन्हें;
आकर वो पास हमारे सारा दिन रोते रहे;
हम भी निकले खुदगर्ज़ इतने यारो कि;
ओढ़ कर कफ़न, आँखें बंद करके सोते रहे।