हज़ार दर्द हों सीने में फिर भी हँस देना
सभी के बस का ये कमाल थोड़ी है
Category: शर्म शायरी
ख़ुद की साजिशो में
ख़ुद की साजिशो में उलझा हुआ ….आज बहुत अकेला सा लग़ा खुद को…
ख़ामियों को गिन रहा हूँ
ख़ामियों को गिन रहा हूँ ख़ुद से रूबरू होकर …..
जो आईने से ज़्यादा अपनों ने बयाँ की हैं
हवा के हौसले
हवा के हौसले ज़ंजीर करना चाहता है वो मेरी ख़्वाहिशें तस्वीर करना चाहता है
हँसकर कबूल क्या करलीं
हँसकर कबूल क्या करलीं, सजाएँ मैंने…….
ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया, हर इलज़ाम मुझ पर लगाने का……
ज्यादा कुछ नही
ज्यादा कुछ नही बदला उम्र बढ़ने के साथ…
बचपन की जिद समझौतों में बदल गयी…!!
तेरा हाथ छूट जाने से
तेरा हाथ छूट जाने से डरता हूँ मैं दिल के टूट जाने से डरता हूँ|
कभी-कभी बहुत सताता है
कभी-कभी बहुत सताता है यह सवाल मुझे..
हम मिले ही क्यूं थे जब हमें मिलना ही नहीं था…
यही हुस्नो-इश्क का राज है
यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं
इतनी बिखर जाती है
इतनी बिखर जाती है तुम्हारे नाम की खुशबु मेरे लफ़्जों मे..!
की लोग पुछने लगते है “इतनी महकती क्युँ है शायरी तुम्हारी..??