रोज़ आते है बादल अब्र ए रहेमत लेकर
मेरे शहर के आमाल उन्हे बरसने नही देते|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रोज़ आते है बादल अब्र ए रहेमत लेकर
मेरे शहर के आमाल उन्हे बरसने नही देते|
ज़ायके सैंकड़ों मौजूद थे लेकिन हम ने !!
हिज्र का रोज़ा तेरी याद से इफ़्तार किया !!
मेरा दिल चाँद जेसा कैसे हो
जिन्दगी ने रहो में कई आफताब खड़े किये
चल आ
तेरे पैरो पर मरहम लगा दूं ऐ मुक़द्दर.
कुछ चोटे तुझे भी तो आई ही होगी,
मेरे सपनो को ठोकर मारते मारते !
न जाने किसने, पढ़ी है मेरे हक़ में दुआ…
आज तबियत में जरा आराम सा है…
तुझे रात भर ऐसे याद करता हूँ मैं जैसे सुबह इम्तेहान हो मेरा ।
किसी को राह दिखलाई
किसी का ज़ख्म सहलाया
किसी के अश्क जब पोंछे
तब इबादत का मज़ा आया|
हुस्न वालों का वजन ही इतना होता है
कि दिल में बैठाते ही दिल टूट जाता है |
बस इसी बात पे फांसला रखा मैं ने.. वो..करीब था..हर किसी के..!!
फ़रार हो गई होती कभी की रूह मेरी !
बस एक जिस्म का एहसास रोक लेता है !!