उड़ा दो रंजिशे….

उड़ा दो रंजिशे….इन हवाओं में यारों…. मौसम नही कहता…. कोई किसी से नफरत करे….

लोग कहते है कि वाह क्या

लोग कहते है कि वाह क्या शबनम छाई है.. उन्हें क्या मालूम कि चाँद ने रो कर रात बितायी है..

कुछ इस तरह रिश्ते निभाते हैं फरेबी लोग

कुछ इस तरह रिश्ते निभाते हैं फरेबी लोग.. अब आपको अपना कहेंगे आप ही के सामने..!

मैं ज़हर तो पी लूँ शौक से

मैं ज़हर तो पी लूँ शौक से तेरी खातिर …. पर शर्त ये है कि तू सामने बैठ कर साँसों को टूटता देखे !

रहने दे मुझे इन अंधेरों में ग़ालिब

रहने दे मुझे इन अंधेरों में ग़ालिब, कमबख़्त रौशनी में अपनो के असली चहरे नज़र आ जाते है !!

जब भी देखता हूँ किसी गरीब को

जब भी देखता हूँ किसी गरीब को हँसते हुए… तो यकीन आ जाता है कि खुशियो का ताल्लुक दौलत से नहीं होता …

मानते है हममे “Maasumiyat”

मानते है हममे “Maasumiyat” है क्योकि “maasumiyat”के पहले 3 शब्द में “Maa” आता है.. और मुझे “Maa” से जुडी हर चीज़ पसंद है..

आहिस्ता बोलने का उसका

आहिस्ता बोलने का उसका अंदाज़ भी कमाल था__!! कानों ने कुछ सुना नहीं, पर दिल सब समझ गया!

तुम दूर हुए तो

तुम दूर हुए तो अहसास हुआ के कई घंटे होते हैं दिन में।

कश्ती भी ना बदली

कश्ती भी ना बदली, दरिया भी ना बदला, हम डूबने वालो का जज्बा भी ना बदला, हे जोक -ए -सफर ऐसा ऐक उम्र से हमने, मंजिल भी ना पाई और रास्ता भी ना बदला

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