आओ बैठो करीब मेरे कुछ तो बात करो,मैं हूँ ख़ामोश गर तो तुम ही शुरुआत करो…
Category: व्यंग्य शायरी
छोडो बिखरने देते हैं
छोडो बिखरने देते हैं ज़िंदगी को..
आखिर समेटने की भी एक हद होती है…
तारीफ़ करने वाले
तारीफ़ करने वाले बेशक आपको पहचानते होंगे,
मगर फ़िक्र करने वालो को आपको ही पहचानना होगा
जब मोहब्बत बेहिसाब की तो
जब मोहब्बत बेहिसाब की तो जख्मों का हिसाब क्या करना?
अक्ल कहती है मारा जाएगा, दिल कहता है देखा जाएगा।
सोचा था घर बना कर
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला
बगैर आवाज़ के..
कितना भी सम्भाल के रख लो दिल को फिर भी,
टूट ही जाता है और वो भी बगैर आवाज़ के..
एक युग था
एक युग था आँसूओं से मैल धो लेते थे सब…
अब जरा सी बात पर खंज़र भी है, पत्थर भी है..
खूबसूरत सा रिश्ता
बड़ा खूबसूरत सा रिश्ता है तेरा और मेरा..
न तूने कभी बाँधा और न मैने कभी छोड़ा !!
खत की खुशबु
खत की खुशबु बता रही है….
लिखते वख्त उनके बाल खुले थे…
जरुरी नहीं की
जरुरी नहीं की काम से ही इंसान थक जाए
फ़िक्र…धोके.. फरेब भी थका देते है इंसान को… जिंदगी में मेरे दोस्त ..