उन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे|
Category: व्यंग्य शायरी
खो गई है मंजिलें
खो गई है मंजिलें, मिट गए हैं रस्ते,
गर्दिशें ही गर्दिशें, अब है मेरे वास्ते |
मनाने की कोशिश
मनाने की कोशिश तो बहुत की हमनें…पर जब वो हमारे लफ़्ज ना समझ सके.. तो हमारी खामोशियों को क्या समझेंगे|
ताल्लुक़ कौन रखता है
ताल्लुक़ कौन रखता है
किसी नाकाम से…!
लेकिन, मिले जो कामयाबी
सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं…!
मेरी खूबी पे रहते हैं यहां,
अहल-ए-ज़बां ख़ामोश…!
मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो,
गूंगे बोल पड़ते हैं…!!
जो भी आता है
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बट न जाए तिरा बीमार मसीहाओं में
ख़्वाबों को इश्क़ का
ख़्वाबों को इश्क़ का एक जहाँ देते है,
चलो के अब नींद को आँखों में पनाह देते है…
आज कितने खुश थे
आज कितने खुश थे वो एक अजनबी के साथ में…
मुझ पर नज़र पड़ी तो…. मायूस हो गये……
मुफ़लिस के बदन को
मुफ़लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत,
अब खुल के मज़ारों पर ये ऐलान किया जाए..!!
जिसके लिए लिखता हूँ
जिसके लिए लिखता हूँ आज कल वो कहती हैं अच्छा लिखते हो… उनको सुनाऊँगी….
बदन तो खुश हैँ
बदन तो खुश हैँ खुद पर रेशमी कपड़ो को पाकर
मग़र ज़मीर रो रहा हैं की मैं बिक गया कैसे…..