न जाने किसका मुक़द्दर संवरने वाला है
वो किताब में एक चिट्ठी छुपा के निकली है|
Category: व्यंग्य शायरी
वक़्त किसी का ग़ुलाम
लोग कहते हैं कि वक़्त किसी का ग़ुलाम नहीं होता
फिर तेरी मुस्कराहट पे वक़्त क्यूँ थम सा जाता है|
मैं चरागों की भला
मैं चरागों की भला कैसे हिफाज़त करता ,
वक़्त सूरज को भी हर रोज़ बुझा देता है..
हुस्न भी तेरा
हुस्न भी तेरा,
अदाएं भी तेरी,
नखरे भी तेरे,
शोखियाँ भी तेरी,
कम से कम इश्क़ तो मेरा रहने दे…
तेरी खूबसूरती जैसे ….
तेरी खूबसूरती जैसे ….
बारिश के बाद पत्तों पर ठहरा हुआ पानी …..
अंदाज़ अपना देखते है
अंदाज़ अपना देखते है आईने में वो
और ये भी देखते है कोई देखता ना हो ..
मेरी उम्र का अंदाज़
मेरी उम्र का अंदाज़ मेरे तज़ुर्बे से लगाना,
मैंने सावन कम देखे होंगे पर बारिशें खूब देखी है।
एक तमन्ना तेरे संग
एक तमन्ना
तेरे संग गुज़र जाए ..
ये उम्र जो बाक़ी है …
मेरे शहर मैं
मेरे शहर मैं खुदाओं की कमी नहीं है,दिक्कतें तो मुझे आज भी
इंसान ढूंढने में होती है…
लोग कहते है
लोग कहते है की सच्चे प्यार की हंमेशा जीत होती है,परंतु होती कब है ये भी बता देते !!