छोटे शहर के अखबार जैसा हूं मैं,,
दिल से लिखता हूं, शायद इसलिए कम बिकता हूं..!
Category: व्यंग्य शायरी
मासूमियत खो दी है
फरेबी हूँ, जिद्दी हूँ, और पत्थर दिल भी हूँ ,
मासूमियत खो दी है मैंने, वफा करते करते….
मज़हब पता चला
मज़हब पता चला जो मुसाफ़िर कि लाश का..
चुप चाप आधी भीड़ घरों को चली गयी…!!”
स्वर्ग में सीढ़ी
स्वर्ग में
सीढ़ी लगाने की
अभिलाषा
खत्म हो गयी
चाहे
साथ ही मेरे …..
चाँद की पगडंडी से
देखा हैं अपना वजूद मैंने
अग्नि भेंट होता भी ….
पर मैं
आज भी
ज़िंदा हू
हमेशा ज़िंदा रहूँगा
तेरे दिलो दिमाग अंदर ….!!
काश वो नया
काश वो नया तरीका-ऐ-क़त्ल इज़ाद करें,
मर जाऊ हिचकियों से वो इस कदर याद करें।
देख रहीं हैं
देख रहीं हैं खामोश नज़रें
तुम्हारा झूठ का नज़रअंदाज़ करना…!!
तेरा ऐसे आने से
ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा।।।।
जो दिखता तुझसा है
मालूम नहीं है मुझको हुस्न की तारीफ मगर
मेरे लिए हर वो शख्स खूबसूरत है जो दिखता तुझसा है
वक्त ही ना मिले
खुद की तरक्की में इतना
समय लगा दो
की किसी ओर की बुराई
का वक्त ही ना मिले……
“क्यों घबराते हो दुख होने से,
जीवन का प्रारंभ ही हुआ है रोने से..
नफरतों के बाजार में जीने का अलग ही मजा है…
लोग “रूलाना” नहीं छोडते…
और हम ” हसना” नहीं……
पसीना बना दे
मुकद्दर एक रोज जरुर बदलेगा बस इतना कर,
जिस्म मैं दौड़ते लहू को माथे
का पसीना बना दे