हर बार बोला

हर बार बोला जाये ये जरूरी तो नहीं
हर राज़ खोला जाये ये जरूरी तो नहीं
हरेक ख़ामोशी भी बयां करती है दर्पण
हर लफ्ज़ तोला जाये ये जरूरी तो नहीं।

थकता जा रहा हूँ

रोज़ रोज़ थकता जा रहा हूँ तेरा इंतज़ार करते करते,
रोज़ थोड़ा थोड़ा टूटता जा रहा हूँ तुजसे एक तरफ़ा प्यार करते करते|

गले मिलने को

गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं,
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं…