आख़िरश दौड़ में वोही जीता
उसकी बैसाखियाँ सुनहरी थी|
Category: लव शायरी
आदत हुई भी
आदत हुई भी तो उसकी हुई..
जिससे तमाम उम्र हम परहेज करते रहे..!
लोग आते हैं
लोग आते हैं मेरे घर की दरारें देखने,
मुझ से मिलने के अक्सर बहाने कर के…!!
यूँ ना खींच मुझे
यूँ ना खींच मुझे अपनी तरफ बेबस कर के,
ऐसा ना हो के खुद से भी बिछड़ जाऊं और तू भी ना मिले .!
मैं जो सब का
मैं जो सब का दिल रखती हूँ,,,
सुनो मैं भी एक दिल रखती हूँ…
उम्मीद से कम
उम्मीद से कम चश्मे खरीदार में आए
हम लोग ज़रा देर से बाजार में आए..
संभल के चलने का
संभल के चलने का सारा गुरूर टूट गया
एक ऐसी बात कही उसने
लड़खड़ाते हुए|
ये जरूरी तो नहीं
ये जरूरी तो नहीं कि उम्र भर प्यार के मेले हों
हो सकता है कभी हम तुम अकेले हों…
मोहब्बत ही में
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम,
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है !!
कल रात मैंने
कल रात मैंने अपने सारे ग़म,
कमरे की दीवार पर लिख डाले,
बस फिर हम सोते रहे और दीवारे रोती रही.