ये कौन सा

ये कौन सा रिश्ता है जो मेरी आँखो से रिस्ता है

वापिस खुद में

वापिस खुद में खुद को पहचान लूँ, इस कदर अजनबी हो जा तू मुझसे…

कब्र को देख के

कब्र को देख के, ये रंज होता है दोस्त… के इतनी सी जगह, पाने के लिए कितना जीना पड़ता है.

कुछ पल का साथ

कुछ पल का साथ दे कर तुम ने पल पल के लिए बेचैन कर दिया मुझको ..

ताउम्र बस

ताउम्र बस एक यही सबक याद रखिये..! इश्क़ और इबादत में नियत साफ़ रखिये…!!

कौन सा मर्ज़

बताओ… कौन सा मर्ज़ हुआ है तुम्हें…! जो परहेज़ सिर्फ मेरे इश्क़ से है

वो मुझे इस तरह से

वो मुझे इस तरह से छोड़ गया.. जैसे रास्ता कोई गुनाह का हो…!

अब कुछ नहीं मेरी

अब कुछ नहीं मेरी रग रग में, रेंगती है तु मेरी नस नस में

मेरे सीख पे इमान लाये हैं

आया हूँ याद बाद-ए-फ़ना उनको भी क्या जल्द मेरे सीख पे इमान लाये हैं|

ईलाज न ढूँढ

ईलाज न ढूँढ इश्क का वो होगा हीं नहीं ,ईलाज मर्ज का होता है ईबादत का नहीं !

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