मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता…
तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मैं तो मोम था इक आंच में पिघल जाता…
तेरा सुलूक़ मुझे पत्थरों में ढाल गया….
मुझे निकाल कर वो शख़्स मेरे घर में रहा ,
जिस की शोहरत के लिए मैं सदा सफ़र में रहा…!
ख़ुद अपना ही साया डराता है मुझे,
कैसे चलूँ उजालों में बेख़ौफ़ होकर?
वो अकलमंद कभी जोश में नही आता,
गले तो लगता है,आगोश मे नही आता।
मिटती है भूख इनके ही दम से जहान की
ताक़त है कितनी देखिये लोगो किसान में….
ख़रीद सको न जिसको दौलत लूटा कर भी
बिक जाता है वो तो केवल एक मुस्कान में !
रिश्ता जमीं से मेरा कभी टूटता नही
वो याद रहा मुझको मेरी हर उड़ान में !
कभी आती है हँसी खुद पर
कभी खाली जेब पर हँसी आती है|
अब अकेला नहीं रहा मैं यारों मेरे साथ अब मेरी तन्हाई भी है…..
टूटकर चाहना और फिर टूट जाना,
बात छोटी है मगर जान निकल जाती है…..