कैसे छोड़ दूँ साथ तेरा प्रिय ,जीवन की ढलती शामों में ….!
धूप -छाँव की साथी हो ,मेरे सुख -दुःख की राहों में …..!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कैसे छोड़ दूँ साथ तेरा प्रिय ,जीवन की ढलती शामों में ….!
धूप -छाँव की साथी हो ,मेरे सुख -दुःख की राहों में …..!!
तूने अता किया था इसलिए गले लगा लिया,
वरना दर्द जैसी चीज़ किसे होती अज़ीज़ है !
कभी किसी के चेहरे को मत देखो बल्कि उसके दिल को देखो,
क्योंकि अगर “सफेद” रंग में वफा होती तो “नमक” जख्मों की दवा होती “.!!
मुद्दतों जिसकी याद में आंख की नमी ना गयी ,
उसकी ही बातें आज हमें मतलबी ठहरा गयी…
वक्त मिले कभी तो कदमों तले भी देख लेना, . . बेकसूर अक्सर वहीं पाये जाते हैं..
तू मूझे नवाज़ता है ये तेरा करम है मेरे
मौला वरना तेरी मेहरबानी के लायक मेरी
इबादत कहाँ…
दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें
दिल भी माना नहीं के तुझसे कहें
आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं के तुझसे कहें
नर्म लफ़्ज़ों से भी लग जाती है चोटें अक्सर,
रिश्ते निभाना बड़ा नाज़ुक सा हुनर होता है
मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।
ये कैसी किस्मत है दिल और भरोसे की,,,
कि सिर्फ टूटना लिखा रब ने मुकद्दर में…
हसरत ये के थाम लूँ हाथ उनका ज़ोर से,
मगर कमबख़्त उनकी चूड़ियों पे तरस आता है…