कैसे छोड़ दूँ

कैसे छोड़ दूँ साथ तेरा प्रिय ,जीवन की ढलती शामों में ….!

धूप -छाँव की साथी हो ,मेरे सुख -दुःख की राहों में …..!!

दुख फ़साना नहीं

दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें
दिल भी माना नहीं के तुझसे कहें
आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं के तुझसे कहें

नर्म लफ़्ज़ों से

नर्म लफ़्ज़ों से भी लग जाती है चोटें अक्सर,
रिश्ते निभाना बड़ा नाज़ुक सा हुनर होता है
मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।