सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें,
क़ुसूर ये था कि जीने के ख़्वाब देखे थे…
Category: बेवफा शायरी
दर्द ओढ़ता हूँ
दर्द ओढ़ता हूँ तेरे और यादें बिछाता हूँ
अकेला अब भी नहीं तेरे जाने के बाद…..
उम्र भर चल के
उम्र भर चल के भी पाई नहीं मंज़िल हम ने,
कुछ समझ में नहीं आता ये सफ़र कैसा है…
सिर्फ वक्त ही
सिर्फ वक्त ही गुजारना हो तो किसी और को आजमा लेना,
हम तो चाहत और दोस्ती दोनों इबादत की तरह करते है|
सिखा दिया हैं
सिखा दिया हैं जहाँ ने, हर जख्म पे हसना….!!
ले देख जिन्दगी, अब मै तुझ से नही डरता….!!
ज़रा अल्फ़ाज़ के
ज़रा अल्फ़ाज़ के नाख़ून तराशों
बहुत चुभते है…….
जब नाराज़गी से बातें करती हो….!!
चल ओ रे मांझी
चल ओ रे मांझी तू चल ।
अपनी राहों को बनाके एक कश्ती हर पल
न दे के हवाला की क्या होगा यहाँ कल
कुछ अधूरी ख्वाईशो मे भर और बल
कभी उन्हें अपना बना,उनके रंगों मे ढल
युही हर मोड़ हर शहर हर डगर
मुसलसल कर कुछ तू यु पहल
चल ओ रे मांझी तू चल ।
दीवानगी के लिए
दीवानगी के लिए तेरी गली मे आते हैं..
वरना.. आवारगी के लिए सारा शहर पड़ा है..
ज़िन्दगी जब चुप सी रहती है
ज़िन्दगी जब चुप सी रहती है
मेरे खामोश सवालो पर…
तब दिल की जुबाँ स्याही से
पन्नें सजाती है..!!
हजारो जबावों से
हजारो जबावों से अच्छी है मेरी खामोशी
ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी ।