सोचा तो नहीं था

ऐसा कोई जिंदगी से वादा तो नहीं था
तेरे बिना जीने का इरादा तो नहीं

था
तेरे लिये रातो में चाँदनी उगाई थी
क्यारियों में खुशबू की रोशनी लगाई थी
जाने कहाँ टूटी

है डोर मेरे ख्वाब की
ख्वाब से जागेंगे सोचा तो नहीँ था
शामियाने शामो के रोज ही सजाएं

थे
कितनी उम्मीदों के मेहमा बुलाएं थे
आके दरवाज़े से लोट गए हो ऐसे
यूँ भी कोई आयेगा

सोचा तो नहीं था…..

मैं पूछता रहा

मैं पूछता रहा

और फ़िर..
इस तरह

मिली वो मुझे सालों के बाद ।
जैसे हक़ीक़त मिली हो ख़यालों के बाद ।।
मैं पूछता रहा उस

से ख़तायें अपनी ।
वो बहुत रोई मेरे सवालों के बाद ।।