सोचता तक नहीं हूँ यारा कभी, मेरे मुकद्दर मै क्या क्या है
मुस्करा कर मुलाकात करता हूँ वक्त के हर एक लम्हे से|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सोचता तक नहीं हूँ यारा कभी, मेरे मुकद्दर मै क्या क्या है
मुस्करा कर मुलाकात करता हूँ वक्त के हर एक लम्हे से|
आसमान की ऊँचाई
नापना छोड़ दे…
जमीन की गहराई बढ़ा,
अभी ओर नीचे गिरेंगे लोग..
अजब ये है कि मोहब्बत नहीं की अब तक;
ग़ज़ब ये है कि फिर भी शायरी का हुनर रखते हैं…
वो तैरते तैरते डूब गये,
जिन्हे खुद पर गुमान था…
और वो डूबते डूबते भी तर गये..
जिन पर तू मेहरबान था ।
बस इतनी सी बात पर
हमारा परिचय तमाम होता है !
हम उस रास्ते नही जाते
जो रास्ता आम होता है…!!!
जिन्दगी जीने का मजा तब तक
जब तक वो जरा अधूरी रही,
मौका दूसरा हर किसी
के मुकद्दर में हो ये जरूरी नहीं।।
हर तरफ नफ़रतों की बू
से जी भर गया है अब
शर्बत-ए-अल्फाज़ से
चलो कड़वाहट
मिटा दी जाये….
न रूठना हमसे हम मर जायेंगे
दिल की दुनिया तबाह कर जायेंगे
प्यार किया है हमने कोई मजाक नहीं
दिल की धड़कन तेरे नाम कर जायेंगे|
दिल खामोश है मगर होंठ हँसा करते हैं
बस्ती वीरान है मगर लोग बसा करते हैं
नशा मयकदों में अब कँहा है यारों..
लोग अब मय का नहीं.
“मैं ”
का नशा करते हैं…….
मैं भी हूँ…..
तुम भी हो
फिर भी न तुम-तुम
हो मुझ बिन न
मैं हूँ तुमबिन.