हर रात एक

हर रात एक नाम याद आता है,
कभी कभी सुबह शाम याद आता है,
सोच रहा हू कर लूँ दूसरी मोहब्बत,
पर फिर पहली मोहब्बत का अंजाम याद आता है..!!

चेहरे गुलाब नहीं होते

जाने क्यूँ अब शर्म, से चेहरे गुलाब नहीं होते।
जाने क्यूँ अब, मस्त मौला मिजाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।
जाने क्यूँ अब चेहरे, खुली किताब नहीं होते।

तारीफ़ करें खुदा

औकात क्या जो लिखूं नात आका की शान में।
खुद तारीफ़ करें खुदा मुस्तफ़ा की कुरान में।
और कीड़े पड़ेंगे देखना तुम उसकी ज़बान में।
गुस्ताख़ी करता हैं जो मेरे आका की शान मे।

बुरा मान गये!

गले से

उन को लगाया तो बुरा मान गये!
यूँ नाम ले के बुलाया तो बुरा मान गये!

ये हक़ उसी ने दिया

था कभी मुज को लेकिन;
जो आज प्यार जताया तो बुरा मान गये!

जो मुद्द्तों से मेरी नींद

चुरा बैठे है;
में उस के ख्वाब में आया तो बुरा मान गये!

जब कभी साथ में होते थे, गुनगुनाते

थे;
आज वो गीत सुनाया तो बुरा मान गये!

हंमेशा खुद ही निगाहों से वार करते थे;
जो तीर

हम ने चलाया तो बुरा मान गये!