लम्हों मे खता की है
सदियों की सज़ा पाई |
Category: प्यारी शायरी
ये भी तो सज़ा है
ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं|
काँटे बहुत थे
काँटे बहुत थे दामन-ए-फ़ितरत में ऐ ‘अदम’
कुछ फूल और कुछ मेरे अरमान बन गये|
वही इश्क़ हैं
तुमसे मीलने और तुम में मीलने में ….
जो फ़र्क़ है….
वही इश्क़ हैं……
बहुत ढूंढने पर भी
बहुत ढूंढने पर भी अब शब्द नही मिलते अक्सर….
अहसासों को शायद पनाह क़लम की अब गंवारा नही…
पर्दा गिरते ही
पर्दा गिरते ही तमाशा ख़तम हो जाता है,
फिर बहुत रोते हैं औरों को हँसाने वाले..
ख़्यालात का रंग
ये शहर शहरे-मुहब्बत की अलामत था कभी
इसपे चढ़ने लगा किस-किस
के ख़्यालात का रंग|
जब आता है
जब आता है गर्दिश का फेर ,
मकड़ी के जाले में फसता है शेर |
हाथ मिलते ही
हाथ मिलते ही उतर आया मेरे हाथों में कितना कच्चा है दोस्त तेरे हाथ का रंग |
बाद-ए-फ़ना
आया हूँ याद बाद-ए-फ़ना उनको भी
क्या जल्द मेरे सीख पे इमान लाये हैं |