जिस्म फिर भी थक
हार कर सो जाता है ….
ज़हन का भी कोई
बिस्तर होना चाहिए …
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जिस्म फिर भी थक
हार कर सो जाता है ….
ज़हन का भी कोई
बिस्तर होना चाहिए …
चीर के ज़मीन को
मैं उम्मीदें बोता हूँ
मैं किसान हूं
चैन से कहाँ सोता हूँ|
ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो
कुछ आदतें बुरी भी सीख लो..ऐब न हों..
तो लोग महफ़िलों में भी नहीं बुलाते…!
मरम्मतें खुद की रोज़ करता हूँ,
रोज़ मेरे अंदर एक नुक्स निकल आता है !!
तेरी याद इलाज -ए- ग़म है,
सोंच तेरा मुकाम क्या होगा!
तेरी मोहब्बत तो
जैसे सरकारी नौकरी हो,
नौकरी तो खत्म हुयी
अब दर्द मिल रहा है पेंशन की तरह!
तकदीरें बदल जाती हैं जब
ज़िंदगी का कोई मकसद हो,
वरना ज़िंदगी कट ही जाती है
तकदीरों को इल्ज़ाम देते देते!
दुरुस्त कर ही लिया
मैंने नज़रिया अपना,
कि दर्द न हो तो
मोहब्बत मज़ाक लगती है!
हद पार करने की भी…
एक हद होती है|
सरेआम न सही फिर भी
रंजिश सी निभाते है..
किसी के कहने से आते
किसी के कहने से चले जाते..