भूख फिरती है मेरे शहर में नंगे पाँव..
रिज़्क़ ज़ालिम की तिजोरी में छिपा बैठा है।
Category: प्यारी शायरी
खामोश सा माहोल
खामोश सा माहोल
और बैचन सी करवट हैं,
ना आँख लग रही हैं,
ना रात कट रही हैं…
क्यों बनाते हो गजल
क्यों बनाते हो गजल मेरे अहसासों की
मुझे आज भी जरुरत है तेरी सांसो की
अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ
अब ये न पूछना कि ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ…
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कुछ चुराता हूँ दर्द दूसरों के कुछ अपनी सुनाता हूँ..!!
ना चाहते हुए भी
ना चाहते हुए भी तेरे बारे में बात हो गई,
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कल आईने में तेरे दिवाने से मुलाक़ात हो गई..!!
बहुत तकलीफ देता है
सिसकना,भटकना,और फिर थम जाना….
बहुत तकलीफ देता है, खुद ही संभल जाना|
शक से भी
शक से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते..
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता |
कितना खुशनुमा होगा
कितना खुशनुमा होगा वो मेरे इँतज़ार का मंजर भी…
जब ठुकराने वाले मुझे फिर से पाने के लिये आँसु बहायेंगे|
किस खत में
किस खत में रखकर भेजूं अपने इन्तेजार को ,
बेजुबां है इश्क़ , ढूँढता हैं खामोशी से तुझे
बस यूँ ही
बस यूँ ही लिखता हूँ वजह क्या होगी ..
राहत ज़रा सी आदत ज़रा सी ..